क्या समलैंगिकता (Homosexuality), हिन्दू धर्म (Hinduism) में अपराध है?

धारा 377 समलैंगिकता (homosexuality) और समलैंगिक विवाह (homosexual marriage) को स्वीकृति दिये जाने के संबंध में चले विवाद के चलते अनेक भ्रांतियाँ समाज मैं फैल गई हैं। धर्म के ठेकेदार जो गाहे-बगाहे हिन्दू धर्म से संबन्धित झूठ फैलाते रहते हैं, असल में वो अज्ञानी और धूर्त हैं जिन्हें धर्म का कोई ज्ञान है ही नहीं। क्या समलैंगिकता हिन्दू धर्म के अंतर्गत निषिद्ध है, अपराध है?

जी नहीं! ऐसा बिलकुल नहीं हैं। अगर निरर्थक विरोध के स्थान पर आप इस तथ्य की खोज करने का प्रयास करें तो आपको इसका सही उत्तर स्वयं ही मिल जाएगा। पुरातन काल से ही हिन्दू धर्म में तीसरा लिंग या जिसे हम नपुंसक लिंग भी कहते हैं के साथ-साथ समलैंगिक सम्बन्धों का भी वर्णन होता आया है। ये अप्राकृतिक (unnatural), असमान्यता (abnormal), बीमारी (disease) या श्राप (curse) नहीं है। स्त्री, पुरुष जैसे एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं वैसे ही समान लिंग का भी एक दूसरे के प्रति आकर्षण कोई नयी बात नहीं है।

हिन्दू धर्म में ईश्वर को किसी भी रूप में पूजिये, शिव (Shiv) के रूप में, विष्णु (Vishnu) के रूप में, श्री गणेश (Ganesh) के रूप में, या कृष्ण (Krishna) के रूप में, आप पाएंगे कि उनसे जुड़ी कथाओं में हमें इस तथ्य की पुष्टि होते मिलती है। शिव का अर्धनारीश्वर (Half men half women) स्वरूप, विष्णु का मोहिनी अवतार, श्री गणेश का विनायकी अवतार, श्री कृष्ण का राधा बनना और राधा का कृष्ण बन कर लीलाएँ करना।

ये सब अध्यात्म से जुड़ा है पर हमारे लिए यही संदेश देता है कि हर व्यक्ति में स्त्री और पुरुष दोनों ही के सारे गुण और भावनाएं निवास करती हैं। समय आने पर या अवश्यकता अनुसार दोनों ही अपने रूप परिवर्तित करते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार ही ये माना गया है कि स्त्री और पुरुष के मेल से उत्पन्न हुई संतान में हड्डियाँ पिता का और रक्त-मांस माता का अंश होता है।

इसी संबंध में पुराणों में उल्लेख ये भी है कि जब दो स्त्रियाँ मिल कर एक संतान का निर्माण करती हैं तो उस संतान को हड्डी विहीन या ‘Boneless Child’ कहा जाता है। अध्यात्म तर्क के परे है इसलिए इस प्रकार के किसी भी तथ्य पर तर्क करना या प्रक्रिया की सत्यता प्रमाणित करना सरल नहीं है। ये एक बहुत बड़े शोध का विषय है।

हिन्दू धर्म के अनुसार ही प्रेम ईश्वरीय तत्व है और दो आत्माओं का मिलन ही प्रेम की उचित परिभाषा है। आत्माओं का कोई लिंग नहीं होता, आत्मा तो निराकार, निर्दोष, निर्गुण, अजर, अमर है। हम न जाने कितने ही जन्म लेते हैं, कब जाके हमें इस जीवन चक्र से मुक्ति मिलती हो किसी को नहीं पता। पर ये आवश्यक नहीं कि प्रत्येक बार हम उसी योनि के अंतर्गत जन्म लें जिसमें हम पिछले जन्म में थे। इस जन्म में मैं स्त्री हूँ तो अगले जन्म में पुरुष भी हो सकती हूँ और शायद तृतीय लिंग में भी मेरा जन्म हो सकता है।

आज जिस व्यक्ति पुरुष या महिला से मुझे प्रेम है, मेरी आत्मा उस आत्मा को पहचानती है। अगले जन्म में क्या पता वो आत्मा मुझे किस रूप में मिले। स्त्री के रूप में, पुरुष के रूप में या तृतीय लिंग के रूप में। अगर वो मुझे मेरे समान लिंग के रूप में मिलती है तो मेरा उसकी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक होगा। इस बात को परे रखते हुए कि वो मेरा समान लिंग है। प्रेम स्वतः उस आत्मा को पहचान लेगा।

कौन कहता है हिन्दू धर्म में समलैंगिकता अपराध है, निषेध है? ‘अर्धनारीश्वर’ (शिव का स्त्री-पुरुष रूप), ‘अरवन’ (एक नायक जिसे कृष्ण ने महिला बनने के बाद विवाह किया था), ‘बहुचारा देवी’ (पारस्परिकता और गूढ़ता से जुड़ी हुईं एक देवी), ‘भगवती देवी’ (क्रोस्ड्रेसिंग से जुड़ी हुई हिन्दू देवी), भागीरथ महाराजा (दो भारतीय माता-पिता से पैदा हुए एक भारतीय राजा), ‘चैतन्य महाप्रभु’ (राधा और कृष्ण के अवतार), ‘चंडी-चामुंडा’ (जुड़वां योद्धा देवी), ‘गडधारा’ (पुरुष रूप में राधा का अवतार), ‘गंगाम्मा देवी’ (एक देवी जो क्रोस्ड्रेसिंग और डिस्गाइस से जुड़ी हुई हैं), ‘हरिहर देव’ (शिव और विष्णु का संयुक्त रूप), ‘कार्तिकेय’, ‘वल्लभवर्धन’, येलम्मा देवी और अनगिनत अन्य लिंग विविधता से जुड़े हिन्दू देवता हैं।

महाभारत काल की बात करें तो शिखंडी का वर्णन आवश्यक है। शिखंडी ने असल में एक स्त्री के रूप में जन्म लिया था जिसका नाम ‘शिखंडनी’ रखा गया था। परंतु उसका पालन पोषण एक पुरुष के समान किया गया। आगे चल के उसका विवाह एक राजकुमारी से कर दिया गया और जैसे ही उस राजकुमारी को इस सत्य का आभास हुआ तो उसने शिखंडी का तिरस्कार करते हुए विवाह विच्छेद कर दिया।

उसके पश्चात शिखंडी का साक्षात्कार एक योगिनी से हुआ और उन दोनों ने अपने लिंगों को एक दूसरे में स्थानांतरित किया। जिसके उपरांत शिखंडी ने पुरुष अवतार ग्रहण करते हुए स्त्री से विवाह किया और आगे का जीवन यापन किया।

पद्म पुराण की एक कथा की चर्चा करें तो राजा ने अपनी मृत्यु से पहले अपनी रानियों को ऐसी औषधी प्रदान की जिससे वो गर्भवती हो जाएँ। जिसके पश्चात कुछ रानियाँ पुरुष आवरण में दूरी से प्रेमालप करती थीं और अपनी संतानों को अपने गर्भ में रखे रहने और पालने के लिए विभिन्न औषधियों का सेवन किया करती थीं।

खजुराहो के मंदिरों की चर्चा किए बगैर इस लेख का उचित अंत नहीं किया जा सकता। आज भी वहाँ की दीवारों पर समलैंगिकता के उकेरे हुए चित्र दर्शित हैं जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। हिन्दू धर्म असल में एक अत्यधिक स्वतंत्र और उच्चश्रंखल धर्म है। जो विविधता से भरा पड़ा है। हाँ! ये बात और है कि काल परिवर्तन के अनुसार ग्रन्थों, पुराणों, उनकी व्याख्याओं को संशोधित कर दिया गया है।

इसके चलते समाज ‘होमोफोबिक’ (Homophobic) हो गया है। इस धर्म का पालन करने वालों से मेरी विनती है कि भ्रांतियों पर विश्वास करने से पहले और अज्ञान को गले लगाने से पहले अपने धर्म का गहराई से अध्धयन करें। नहीं कर सकते तो फिर कमसेकम भ्रांतियों का शिकार ना हों और प्रकृति की अवेहलना ना करें और इन झूठे, मक्कार, अज्ञानी धर्म के ठेकेदारों का समर्थन करना बंद करें।   

2 thoughts on “क्या समलैंगिकता (Homosexuality), हिन्दू धर्म (Hinduism) में अपराध है?”

  1. Rishi ranjan srivastava

    I don’t know what to say.we have to remember one thing we are hindu.we have lot’s of rituals.mother and father are the base of life.so if you would take my opinion about that kind of wed-lock depends on our parents.i don’t know am I correct or wrong but anchal saxsena mam mere father ki death 24years pahle hua tha … mother ne bhaut accha se Hume Pala agar Mera case ho to pahle MAA… Or waise bhi Sadi karni hi nahi hai…..Pyar hi pasand nahi hai to Sadi Kaha se pasnd aaiga..

  2. हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म की बात कही गयी है और आत्मा का कोई लिंग नहीं होता यह भी प्रतिपादित है I यह भी कहा जाता है कि दैहिक प्रेम से जादा मजबूत आत्मिक प्रेम है और आत्मा अपने पूर्वजन्म में किये गए कर्मों का फल भोगने के लिए दुबारा शरीर धारण करती है I अब समझने की बात है कि किसी जन्म में दो शरीरों के अन्दर वास करने वाली आत्मा एक दूसरे का अंश हैं तो उनके बीच में प्रेम होना स्वाभाविक है I उन दोनों शरीरों के बीच रिश्ता क्या होगा ये उनके पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार ही होगा I यह मां-बेटा, पिता – पुत्र , पिता – पुत्री , पति – पत्नी या वोह I प्रेम ही नहीं पूर्वजन्म के कर्मों के आधार पर ही दो शरीरों के बीच दुश्मनी भी संभव है I

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