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हिन्दी भी शान बढ़ाती है (Hindi is our Pride)

मैं केवल हिन्दी (Hindi) में ही क्यूँ लिखती हूँ? इस सवाल के कई संभावित जवाब हो सकते हैं। जैसे मुझे अँग्रेजी (English) का ज्ञान (knowledge) नहीं। या मेरी अँग्रेजी कमज़ोर है। हो सकता है मैंने हमेशा हिन्दी माध्यम से ही शिक्षा गृहण की हो। या फिर कुछ और भी कारण हो सकता है। मेरे पाठक या जो मुझे नहीं भी पढ़ते हैं वो किसी भी प्रकार का अनुमान लगा सकते हैं और ज़रूर लगाइए। पर आज इस लेख का उद्देश्य मेरा भाषा ज्ञान नहीं है अपितु ये समझाना है कि भाषा विचारों का आदान-प्रदान करने का एक साधन मात्र है। हम बोलचाल या लेखन के लिए उसी भाषा का प्रयोग करते हैं जो हमारी और हमारे श्रोताओं या पाठकों को आसानी से समझ आए और हमारा भाव भली प्रकार से उन तक पहुँच पाये। ये ही करना भी चाहिए।

फिर भी बताती हूँ, कि मैंने अँग्रेजी और हिन्दी दोनो ही माध्यमों के द्वारा अपनी शिक्षा पूर्ण की है। कुछ लोगों को ये जान कर अचंभा हो सकता है कि दसवीं मैंने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के आधीन पूरी की वो भी अँग्रेजी माध्यम से। बारहवीं कक्षा में मेरा बोर्ड बदल कर सी.बी.एस.सी. हो गया और यहाँ हिन्दी एक वैकल्पिक विषय के रूप में था। कमाल की बात ये थी कि पूरी कक्षा में केवल मैं थी जिसने हिन्दी को अपनाया और बाकी सहपाठियों ने फिजिकल एजुकेशन को। दुर्भाग्यवश बोर्ड के फॉर्म में सबके साथ मेरा भी विषय हिन्दी से बदल कर फिजिकल एजुकेशन हो गया और पूरा साल हिन्दी पढ़ने के बाद भी मुझे उसकी परीक्षा देने का अवसर नहीं मिला। स्नातक, स्नाकोत्तर और विधि उपाधियों की पढ़ाई मैंने हिन्दी माध्यम से की। स्नातक स्तर पर मैंने अँग्रेजी और हिन्दी साहित्य को अपना विषय चुना था और कभी कल्पना भी नहीं की थी कि स्नाकोत्तर उपाधि मैं हिन्दी साहित्य में प्राप्त करूंगी।

हिन्दी, अँग्रेजी दोनों ही मेरे प्रिय विषय रहे हैं। स्कूल, कॉलेज में जब तक दोनों ही विषयों के शिक्षा चली गद्य और पद्य की व्याख्याओं को मैं सदा महसूस कर के लिखा करती थी और कई बार मेरे शिक्षकों से मुझे उन व्याख्याओं के लिए प्रशंसा मिली। अब तक मुझे हिन्दी से प्रेम हो चुका था। हाँ! ये सही है कि मेरा अँग्रेजी का शब्दकोश उस स्तर का नहीं जिस स्तर से मैं हिन्दी से परिचित हूँ। मुझे इस बात को मानने में कोई शर्म नहीं। मेरे लिए अँग्रेजी का प्रयोग और ज्ञान ज़रूरत भर का है। जहां हिन्दी ना समझी जाती हो या जहां मात्र अँग्रेजी में ही कार्य किया जाता हो वहाँ के लिए मेरे पास सक्षम अँग्रेजी ज्ञान है।

मैं यहा ये बिलकुल नहीं कहना चाहती कि भारतियों के लिए हिन्दी बोलना और लिखना ज़रूरी होना चाहिए। नहीं, ऐसा सही नहीं है। क्यूंकी भारत में कुछ ही राज्य है जो हिन्दी भाषी हैं और हम सब जानते हैं कि भारत विभिन्न भाषाओं का देश है। अहिंदी भाषी राज्यों या क्षेत्रों पर हिन्दी थोपना कतई सही नहीं होगा। काफ़ी बड़ी तादात में जनता ये समझती है कि हिन्दी हमारी मात्रभाषा (mother tongue) है। । जबकि ऐसा है नहीं। कभी भाषा के इतिहास पर खोज कीजिये तो इस बात का भी उत्तर मिलेगा। ये एक विस्तृत विषय है। संक्षेप में यही कहूँगी कि जिस भाषा को हम हिन्दी के रूप में जानते हैं और प्रयोग करते हैं वो असल में कई अन्य भाषाओं का मिश्रण है। जैसे संस्कृत, उर्दू, अरबी, फ़ारसी, तुर्क भाषा, ईरानी इत्यादि। ऐसा इसलिए है क्यूंकी भारत ने जैसे-जैसे विदेशियों के आक्रमण या शासन देखे या उनका स्वागत किया, वैसे-वैसे ही यहाँ कि अपनी भाषा पर दूसरी भाषाओं का प्रभाव पड़ता गया और अंततः ये आम बोल चाल की भाषा बन गयी और हिन्दी कहलाने लगी। पर भारत किसी एक भाषा तक सीमित नहीं है। जहां मराठी, बंगाली, पंजाबी, मलयालम, कन्नड़, तमिल, तेलगु आदि भाषाएँ मिल कर भारत का निर्माण करती हैं वहीं हिन्दी भी अवधी, बृज, भोजपुरी, कन्नौजी आदि नामों से बंटी हुई है।

भारत के संविधान (Indian constitution) में भी हिन्दी और अँग्रेजी को आधिकारिक (official)भाषा (language) के रूप में पहचान प्राप्त है और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का भी वर्णन है। यानी हिन्दी और अँग्रेजी दोनों ही भारत की ओफिशियल भाषाएँ हैं।

आज सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से हर व्यक्ति अपने जीवन, अपने विचार और बहुत कुछ दुनिया से साझा कर रहा है। पता नहीं हमें ऐसा क्यूँ लगता है कि यहाँ केवल अँग्रेजी में ही लिखा जा सकता है या लिखना चाहिए। या फिर हमने यदि अँग्रेजी में नहीं लिखा तो हमारी शान में कमी आ जाएगी। किसी भी भाषा का प्रयोग कीजिये पर स्पष्ट और त्रुटिहीन कीजिये। उसकी टांग मत तोड़िए। अर्थ का अनर्थ हो जाता है। एक समय था जब कंप्यूटर पर हिन्दी लिखने के लिए हिन्दी की टाइपिंग सीखना आवश्यक होता था। पर तकनीक के इस युग में इस समस्या का समाधान भी कर दिया है। गूगल प्ले स्टोर से गूगल टूल्स डाउनलोड कीजिये और अपना फॉन्ट चुनिये। अब वो चाहे हिन्दी हो या कोई और भाषा। ऐसी कई एप्स मौजूद हैं जिनके द्वारा हम हिंगलिश में टाइप करते हुए उसे हिन्दी में बदल सकते हैं। फिर क्या समस्या है। पूरी शान से हिन्दी का प्रयोग कीजिये। अपनी बात और अपने विचारों को बिना हिचकिचाये पूरी शिद्दत से लिख डालिए।

ना अँग्रेजी बड़ी है ना हिन्दी छोटी और हिन्दी भाषी राज्यों के सभी माता-पिताओं से मेरा आग्रह है कि जितना आप अपने बच्चों को अँग्रेजी पढ़ने और सीखने के लिए प्रेरित करते हैं उतना उन्हें स्पष्ट और साफ़ हिन्दी बोलने और लिखने के लिए भी प्रेरित करें। कहीं ना कहीं हिन्दी हमारी पहचान है। अँग्रेजी अवश्य ही ज़रूरी है पर हिन्दी को दरकिनार करना उचित नहीं। हिन्दी हमारी शान नहीं घटाती और अँग्रेजी कोई स्टेटस सिंबल नहीं है। आवश्यक है तो भाषा की मर्यादा बनाए रखना। जिस भी भाषा का प्रयोग करें उसे सम्मान दें और उसका सम्मान बनाए रखें।

1 thought on “हिन्दी भी शान बढ़ाती है (Hindi is our Pride)”

  1. भाषा कोई भी पढ़ें और सीखें अगर अपने को सफलता पूर्वक व्यक्त नहीं कर सकते तो बेकार है I भाषा केवल माध्यम है अपने को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने का I भाषा को स्टेटस सिंबल समझना गलत है

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