भीड़-तंत्र (Mob Law) किसी भी देश की सुख शांति के प्रति एक अभिशाप है।
“Dear America: Your are waking up, as Germany once did to the awareness that 1/3 of your people would kill another 1/3, while 1/3 watches.”
-Werner Herzog
वर्नर हर्ज़ोग, एक जर्मन फिल्म निर्देशक और स्क्रीनराइटर ने उपरलिखित वक्तव्य कहा था। अगर इसका मैं हिन्दी में अनुवाद करूँ और अमरीका की जगह भारत लिख दूँ तो ये ऐसा लगेगा:
प्रिय भारत: तुम जाग रहे हो जैसे एक बार जर्मनी जागा था कि उसके 1/3 लोगों को 1/3 लोग मार डालेंगे और बाकी 1/3 देखेंगे।
इस वक्तव्य पर गौर करिए तो इस समय भारत यानी हमारे प्रिय देश की स्थिति यही है। इस समय देश कई संकटों से एक साथ गुज़र रहा है। महामारी (pandemic), अस्थिरता, असंतुलन, असामाजिकता (anti social), अराजकता (anarchy) अपने चरम पर है। देश की आर्थिक स्थिति डगमगा गयी है। पर जो सबसे ज़्यादा भयभीत कर देने वाला तथ्य है, वो है कि देश की एक बड़ी जनसंख्या इस तथ्य के प्रति अंधी और बहरी हो कर बैठी है।
क्या आप होलोकॉस्ट (holocaust) के बारे में जानते हैं। होलोकॉस्ट इतिहास की वो घटना है जो हिटलर के शासन के दौरान यहूदी संप्रदाय के लोगों को जड़ से खत्म कर देने का सोचा-समझा और योजनाबद्ध प्रयास था। 1933 में ‘अडोल्फ़ हिटलर’ (Adolf Hitler) जर्मनी की सत्ता में आया और उसने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की। इसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। 1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपना अंतिम हल अमल में लाना आरंभ किया। उन्हें खास जगहों में ठूस कर रखा जाता था, भूखा रख कर श्रम कराया जाता था और फिर जहरीली गैस छोड़ कर मार दिया जाता था। युद्ध के 6 वर्षों के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें से 15 लाख बच्चे थे। (होलोकॉस्ट पर विस्तार से जानने के लिए आप जर्मनी और इटलर का इतिहास पढ़ सकते हैं)
अब आप सोचेंगे कि क्या मैं भारत की तुलना और भारत के सत्ताधारियों की तुलना जर्मनी और हिटलर से कर रही हूँ। नहीं, बिलकुल नहीं। तुलना तो दूर की बात है मैं ऐसी वीभत्स और भयंकर कल्पना से भी भयभीत हूँ। पर हाँ मुझे लगता है हम उसी रास्ते पर हैं। हम में भी एक धर्म, जाति, नस्ल और शुद्धता का जहर हर रोज़ ठूँसा जा रहा है। प्रतिदिन हमारे अंदर झूठ ठूँसा जाता है। जिसे हम चाहते और ना चाहते हुए ग्रहण कर रहे हैं। उसका नतीजा ये होगा कि वो सारे झूठ एक दिन हमारे अंदर सच बन कर पनपेंगे और हम भी किसी नरसंघार का या तो कारक होंगे या पीड़ित होंगे। जैसे भारत में भीड़तंत्र एक समुदाय विशेष पर अपना कहर ढाता है और भारतीय प्रशासन आँख मूँद कर बैठा रहता है वैसे ही अगर चलता रहा तो वो दिन अब आ गया है जब हम एक दूसरे को मार-काटना आरंभ कर दिया है। अब हमें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि किसका धर्म क्या है? किसका समुदाय क्या है? किसकी जाति क्या है? हम बस भीड़ हैं जो असहाय पर टूट पड़ना चाहते हैं।
मैं अपने जन्म से हिन्दू हूँ पर कर्म से मेरा कोई धर्म (religion) नहीं। मैं पूजा, अर्चना करती हूँ। ईश्वर में विश्वास रखती हूँ। पर मेरे लिए उस ईश्वर को किसी रंग-रूप में आकार दे कर पूजा करने की बाध्यता नहीं है। मंदिर, मस्जिद, चर्च हो या गुरुद्वारा मैं हर जगह अपना माथा टेक लेती हूँ। मुझे श्री राम पर आस्था है पर राम का नाम लेना या ना लेना मेरे मुक्त हृदय की इक्षा पर निर्भर है। हिन्दू हो के भी मैं ज़बरदस्ती किसी के कहने पर राम का नाम नहीं लूँगी। मुझे ये दिखावा करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती। सोच के देखिये अगर किसी अन्य धर्म के व्यक्ति भीड़ बन कर आप पर टूट पड़ें और आपसे ज़बरदस्ती उनके ईश्वर का महिमामंडन करने के लिए आपको बाध्य करें तो आप क्या करेंगे? ज़ाहिर है आप ना ही करेंगे। पर फिर आपके साथ क्या होना चाहिए? आपको पीट-पीट कर मार दिया जाना चाहिए। है ना?
हिन्दुत्व के नाम पर हमारे देश में जिस तरह एक बार फिर बंटवारा किया जा रहा है, राम के नाम पर हत्यायें हो रही हैं, ये आखिर है क्या? ये भी एक साजिश है। समुदाय विशेष को खत्म कर देने की साजिश। लोगों में हिन्दुत्व का जहर भर दो और एक चिन्हित सभ्यता का अंत कर दो। देश को बांटे रखो और राज करो। बिलकुल वैसे जैसे अंग्रेजों ने किया। ऐसे ही नहीं अंग्रेज़ हम पर 200 साल राज करते रहे। इसी वीभत्स मानसिकता का परिणाम हमारे सामने हाल ही में भीड़ द्वारा संतों की गयी हत्या के रूप में आया। ताज्जुब की बात ये है कि जिनको अब तक भारत में भीड़ तंत्र दिखाई नहीं दे रहा था उनको भी दिखने लगा है। आए वो लोग हैं जो सोचते थे कि समुदाय विशेष पर प्रहार करने के लिए भीड़ जुटा रहे हैं। पर सत्य यही है कि भीड़ मात्र भीड़ होती है। भीड़ का भी कोई धर्म नहीं होता और जब वो दंड देने के लिए किसी पे टूट पड़ती है तो तब भी धर्म नहीं देखती। इस भीड़ से कोई सुरक्षित नहीं है।
गौर करिए तो प्रत्येक क्षेत्र से बुद्धिजीवी दूर हो रहे हैं। इतिहास की महान हस्तियों के बारे में लगभग रोज़ झूठ परोसा जा रहा है। यहाँ तक कि वर्तमान सामाजिक और आर्थिक स्थिति के भी झूठे आंकड़े प्रस्तुत किए जा रहे हैं। मज़े की बात ये है कि 2020 में हो कर भी, जेट युग में हो कर भी, हांथ में इंटरनेट और गूगल हो कर भी हमने शोध करना बंद कर दिया है और हमेशा की तरह बस हम अंधाधुंद अंधविश्वास में गलत लोगों का समर्थन कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जिन्हें देश के बच्चों के मर जाने का कोई दुख नहीं। जिन्हें किसी की जान का कोई दुख नहीं। ये वो लोग हैं जो उनसे सवाल करने वालों को, उनकी आलोचना करने वालों को, उनकी पोल खोलने वालों को जेल पहुंचा देते हैं। उनकी बोलती बंद कर देते हैं। उनका जीवन बर्बाद कर देते हैं। उनकी जान तक ले लेते हैं।
करते रहिए, आप उन्हीं का समर्थन करते रहिए। उन्हें भगवान मान कर पूजिए। आप तब तक ऐसा करेंगे जब तक आप पर खुद नहीं बीतेगी। जब तक आप इस भीड़तंत्र के शिकंजे में नहीं आएंगे। ये सोच कर संतुष्ट मत बैठिएगा कि जो बीज आपने खुद बोये हैं उसकी फसल आपको नहीं काटनी पड़ेगी।
हाँ भीड़ का कोई धर्म नहीं होता , दोषी केवल वह है जो भीड़ को उकसाता है , अफसोस आजकल उकसाने के कार्य में सोशल मीडिया के साथ साथ एलोक्ट्रोनिक मीडिया पर कार्य रत लोग भी लगे हुए हैं I