पहली किताब बिलकुल पहले प्रेम (love), पहली नौकरी या पहली संतान (child) की भांति होती है। उतनी ही मधुर और प्रिय। वैसे भी जो पहला होता है वैसा दूसरा कहाँ हो सकता है। मेरी पहली किताब “विश्वास और मैं” मेरा वो स्वप्न है जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि साकार होगा। अनगढ़ सा कुछ बुनने बैठो और वो एक सुंदर आकार ले ले तो फिर जीवन परिवर्तित हो जाता है। 2016 में इस कहानी को लिखना आरंभ किया था। बिना इस बात की फिक्र किए कि ये किताब का रूप ले कर छप भी सकेगी या नहीं। हमारे आस पास ना जाने कितनी कहानियाँ बुनती रहती हैं। एक सच्चे और अच्छे लेखक को बस इना करना होता है कि उनमें से कोई एक कहानी चुन ले और शब्दबद्ध कर डाले। मैंने भी यही किया। बस थोड़ा इधर देखा थोड़ा उधर और मिल गयी कहानी। सच्चाई की सिलाई उठाई और कल्पना के धागे और बन के तैयार हुई एक सुंदर कहानी। दो प्रेमियों की कहानी जो टूट कर एक दूसरे से प्रेम करते हैं पर उस प्रेम को किसी मंज़िल तक नहीं पहुंचा पाते। उनके रिश्ते में सब कुछ है मित्रता (friendhship), प्रेम, समर्पण (devotion), विश्वास (trust) पर फिर भी एक अधूरापन है जो 13 वर्ष के रिश्ते में भी दूर नहीं हो पाता। इसलिए इस कहानी का उपशीर्षक है “अधूरी कहानी का पूरा रिश्ता।“